॥ दोहा ॥
आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं
बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं
॥ चौपाई ॥
श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।
ता सम भक्त और नहिं होई ॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।
ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥
जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।
सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।
जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥
तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।
रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।
दीनन के हो सदा सहाई ॥
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।
सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी ।
तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥
गुण गावत शारद मन माहीं ।
सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ 10 ॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई ।
ता सम धन्य और नहिं होई ॥
राम नाम है अपरम्पारा ।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।
तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।
महि को भार शीश पर धारा ॥
फूल समान रहत सो भारा ।
पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।
तासों कबहुँ न रण में हारो ॥
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।
सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥
लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।
सदा करत सन्तन रखवारी ॥
ताते रण जीते नहिं कोई ।
युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥
महा लक्ष्मी धर अवतारा ।
सब विधि करत पाप को छारा ॥ 20 ॥
सीता राम पुनीता गायो ।
भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥
घट सों प्रकट भई सो आई ।
जाको देखत चन्द्र लजाई ॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत ।
नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥
सिद्धि अठारह मंगल कारी ।
सो तुम पर जावै बलिहारी ॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई ।
सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥
इच्छा ते कोटिन संसारा ।
रचत न लागत पल की बारा ॥
जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।
ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥
सुनहु राम तुम तात हमारे ।
तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे ।
तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥
जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।
जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥ 30 ॥
रामा आत्मा पोषण हारे ।
जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।
निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥
सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।
सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।
सो निश्चय चारों फल पावै ॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।
तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।
नमो नमो जय जापति भूपा ॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।
नाम तुम्हार हरत संतापा ॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।
बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।
तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥
याको पाठ करे जो कोई ।
ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥ 40 ॥
आवागमन मिटै तिहि केरा ।
सत्य वचन माने शिव मेरा ॥
और आस मन में जो ल्यावै ।
तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥
साग पत्र सो भोग लगावै ।
सो नर सकल सिद्धता पावै ॥
अन्त समय रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
श्री हरि दास कहै अरु गावै ।
सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥
॥ दोहा ॥
सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥
राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥
दोहा का हिंदी में अर्थ
आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं
इस पंक्ति का अर्थ है: राम जी ने तपोवन में जाकर स्वर्ण मृग का वध किया। इसका सांकेतिक अर्थ है कि राम के जीवन की प्रारंभिक घटनाओं में तपोवन जाना और मृग का पीछा करके उसे मारना शामिल है।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं
इसका अर्थ है: सीता का हरण हुआ, जटायु की मृत्यु हुई और सुग्रीव से राम की मित्रता हुई। यह रामायण की महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जहां सीता का हरण रावण द्वारा किया गया और जटायु ने सीता को बचाने की कोशिश में अपने प्राण दे दिए।
बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्
यहां इसका अर्थ है: बाली का वध, समुद्र का पार करना और लंका नगरी का दहन। बाली का वध करके सुग्रीव को राज्य वापस दिलाना और लंका का दहन हनुमान जी द्वारा किया गया।
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं
इसका अर्थ है: इसके बाद रावण और कुम्भकर्ण का वध हुआ, और यह सम्पूर्ण रामायण की कथा है।
चौपाई का हिंदी में अर्थ
श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।
श्री रघुवीर (राम) भक्तों के हितकारी हैं, उनकी भक्ति से सबका कल्याण होता है।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
हे प्रभु, हमारी प्रार्थना को सुन लीजिए।
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।
जो भी रात-दिन प्रभु का ध्यान करता है, उसकी भक्ति सर्वोत्तम होती है।
ता सम भक्त और नहिं होई ॥
ऐसा भक्त संसार में और कोई नहीं होता।
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।
भगवान शिव भी राम का ध्यान अपने मन में करते हैं।
ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥
ब्रह्मा और इन्द्र भी राम की महिमा का अंत नहीं पा सकते।
जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।
जय हो, जय हो, रघुनाथ जी की, जो कृपालु हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं।
सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥
आप हमेशा संतों की रक्षा करते हैं।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।
आपके दूत वीर हनुमान हैं, जिनकी महिमा त्रिलोक में प्रसिद्ध है।
जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥
हनुमान जी के प्रभाव से तीनों लोकों में उनका यश फैला है।
सारांश
रामायण की कथा में श्रीराम का वन गमन, सीता का हरण, सुग्रीव से मित्रता, बाली का वध, समुद्र का पार करना, लंका का दहन और अंततः रावण और कुम्भकर्ण का वध जैसी महत्वपूर्ण घटनाएं वर्णित हैं। रामचरितमानस में प्रभु राम की महिमा, उनके भक्तों की भक्ति और उनके प्रति समर्पण का गुणगान है। भगवान राम सच्चे संतों और भक्तों की रक्षा करते हैं, और उनकी कृपा से भक्त सभी सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं।